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सीसीएल
का पूर्व इतिहास गौरवपूर्ण रहा है।एनसीडीसी के रूप में भारत
में कोयले के राष्ट्रीयकरण के प्रारम्भ में इसकी घोषणा की गई।
एनसीडीसी की स्थापना भारत सरकार के औद्योगिक नीति संकल्प 1948
तथा 1956 के अनुसरण में सरकारी स्वामित्व वाली कम्पनी के रूप
में अक्तुवर 1956 में हुई।इसका प्रारम्भ 11 पूरानी राज्य
कोलियरियों में हुआ।(रेवले के स्वामित्व में) जिसका वार्षिक
उत्पादन 2.9 मिलियन टन था। एनसीडीसी की स्थापना तक भारत में कोयले का खनन वेस्ट बंगाल में रानीगंज कोल वेल्ट तथा बिहार(अब झारखण्ड) में झरिया कोलफील्ड में फैला हुआ था।इसके अलावा बिहार के(अब झारखण्ड) कुछ क्षेत्र और मध्य प्रदेश, अब छत्तीसगढ़ भी, तथा उड़ीसा में फैला हुआ है । प्रारम्भ से ही एनसीडीसी ने कोयला उत्पादन बढ़ाने तथा नये कोयला संसाधनों को विकसित करने का कार्य किया।इसके अलावा कोयला खनन के आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीक की स्थापना किया। दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) में एनसीडीसी ने पूर्णतया विकसित रानीगंज और झरिया कोयला क्षेत्र से दूर खोले जाने वाली कॉलियरियों से उत्पादन बढ़ाने का कदम उठाया ।इस अवधि में आठ नई कोलियरियॉं खोली गई तथा दूसरी पंचवर्षीय योजना के अंत तक 8.05 मिलियन टन उत्पादन बढ़ गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966) के दौरान, यद्यपि निगम ने अपनी उत्पादन क्षमता काफी बढ़ा लिया था, घरेलू कोयले के बाजार में मंदी आने के कारण इसका उपयोग अधिक नहीं हो सका।अतः उत्पादन में कमी आई और पहले जिन कोलियरियों का विकास किया जा रहा था उसमें से अधिकाशं कोलियरियों के विकास की गति योजना अवधि में धीमी हो गई तथा इसे निलंवित कर दिया गया।तब तक एनसीडीसी का देश के कोयला उत्पादन में योगदान (67.72 मिलियन टन ) लगभग 9.6 मिलियन टन बढ़ गया । चौथी पंचवर्षीय योजना(1969-1974 ) में नये पावर प्लान्ट प्रारम्भ होने तथा दूसरे कोयला आधारित उद्योगों के विकास के कारण कोयले की मांग धीरे धीरे बढ़ी।चौथी पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष में अर्थात 1973-74 में एनसीडीसी का उत्पादन 15.55 मिलियन टन बढ़ गया।
उच्च श्रेणी के कोयले के संरक्षण को बढ़ावा
देने तथा भारी पूंजी निवेश कर तथा तकनीकी कौशल लगाकर डीप कोकिंग
कोल सीम का पता लगाने हेतु एनसीडीसी ने बड़े पैमाने पर
यांत्रीकरण तथा आधुनिक वैज्ञानिक तरीका लागू कर भारत के कोयला
उद्योग में अग्रणी भूमिका निभाई।जापान, वेस्ट जर्मनी और
फ्रांस के साथ सीमित सहयोग के अलावा एनसीडीसी ने पौलेण्ड और
यूएसएसआर जैसी विदेशी कम्पनियों के साथ सहयोग किया।उच्च श्रेणी
के कोयले के संरक्षण को बढ़ावा देने तथा भारी पूंजी निवेश कर तथा
तकनीकी कौशल लगाकर डीप कोकिंग कोल सीम का पता लगाने हेतु
एनसीडीसी ने बड़े पैमाने पर यांत्रीकरण तथा आधुनिक वैज्ञानिक
तरीका लागू कर भारत के कोयला उद्योग में अग्रणी भूमिका निभाई ।जापान, वेस्ट जर्मनी और फ्रांस के साथ सीमित सहयोग के अलावा
एनसीडीसी ने पौलेण्ड और यूएसएसआर जैसी विदेशी कम्पनियों के साथ
सहयोग किया। |
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पंचवर्षीय योजना (1969-74 )के दौरान भारतीय कोयला उद्योग के इतिहास में तत्कालीन प्राइवेट
स्वामी के अधीन चलने वाली कोयला खदानों का दो चरणों में
राष्ट्रीयकरण एक बड़ी घटना थी।प्रथम चरण में 17 अक्टूबर 1971
को भारत सरकार द्वारा कोकिंग कोल खदानों का प्रबंध अपने हाथ
में लिया गया तथा दिनांक 5 जनवरी 1972 से राष्ट्रीय करण प्रभावी
हुआ।राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड
की स्थापना कोकिंग कोल ख्ँदानों के प्रबंधन के लिए की गई।प्रबंधन की सुविधा के लिये बिहार में(अब झारखण्ड) ईस्ट बाकारो
में बी.सी.सी.एल कोलियरियों को एन.सी.डी.सी. में स्थानान्तरित
किया गया तथा सेप्ट्रल झरिया रीजन अर्थत सुदाम डीह तथा मुनी डीह
डीप शाफ्ट माईन को बी.सी.सी.एल को सौपा गया। राष्ट्रीयकरण के दुसरे चरण में देश में नानकोकिंग कोल खदानों का प्रबंधन, दो स्टील प्लाट की कैप्टिव खदान अर्थात टिस्को और ईस्को को छोड़ कर,31 जनवरी 1973 को सरकार द्वारा लिया गया।बाद में इन खदानों का राष्ट्रीयकरण 1 मई 1973 से हुआ तथा अन्य राज्य की स्वामित्व वाली कंपनी सी.एम.ए.एल अस्तित्व में आई इसका मुख्यालय कलकत्ता (अब कोलकाता) हुआ जिसका कार्य एन.सी.डी.सी कोलियरियों तथा अन्य राष्ट्रीयकृत ईकाईयों का प्रबंधन और बिकास करना था।इस प्रक्रिया में एन.सी.डी.सी. स्वतः सी.एम.ए.एल. का डिवीजन हो गया तथ्रा बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र में वाणिज्यिक उत्पादन के अधीन 36 कोलियरियों का स्वामी हुआ इसके अलावा चार वाशरियाँ, एक सह उत्पाद कोक ओवन प्लाट, दो बड़े सेन्ट्रल वर्कशाँप तथा लगभग 71000 श्रमशक्ति इसके अधीन हुई । सी.एम.ए.एल. की स्थापना से कोयला खदाने तीन ग्रुप अर्थात वेस्टर्न , सेन्ट्रल कौर ईस्टर्न में वर्गीकृत हुई ।कोलियरियों की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रबंधन की सुविधा हेतु यह वर्गीकरण किया गया। 1) फलस्वरूप महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश,सिंगरौली कोलफील्डस को छोड़कर, राज्य में स्थित एन.सी.डी.सी. की ईकाईयां वेस्टर्न डिवीजन का हिस्सा बनी। 2) उड़ीसा और बिहार (सुदाम डीह तथा मुनी डीह, जिसे बी.सी.सी.एल को सौपा गया था, को छोड़कर ) में एन.सी.डी.सी. की सभी पुरानी कोलियरियां तथा बिहार के गिरीडीह, इस्ट बोकारो, वेस्ट बोकारो, साउथ कर्णपुरा, नार्थ कर्णपुरा, हुटार और डालटेनगंज कोलफील्डस जो टेक ओवर के वाद सी.एम.ए.एल. द्वारा अधिग्रहीत की गई थी, वे सभी खदानें सेन्ट्रल डिवीजन में आती है।सेन्ट्रल डिवीजन में 64 कोलियरियां, चार कोलवाशरियां, एक सह उत्पाद कोकओवन प्लट, आँन बी हाईब कोक प्लांट तथा एक सेन्ट्रल वर्क शाँप तथा इसकी श्रमशक्ति 111500 थी। |
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सी.एम.ए.एल. अपने तीन डिवीजन के साथ 1 नवम्बर 1975 तक था वाद में कोयला उद्योग का पुनर्गठन हेतु भारत सरकार के निर्णय के अनुसार इसका पुनः नामकरण हो कर कोल इण्डिया लिमिटेड (सी.आई.एल) हुआ।सी.एम.ए.एल. के सेन्ट्रल डिवीजन को सेन्ट्रल कोलफील्डस लिमिटेड के रूप में जाना गया तथा ये सी.आई.एल., जो नियंत्रक कंपनी बनी, की एक सहायक कंपनी के रूप में अलग से एक कंपनी हुई । |